ऋग्वेद के छठे मंडल के द्रष्टा, विमान शास्त्र और आयुर्वेद के संवाहक, तथा रामायण में गुरु-मार्गदर्शक के रूप में पूज्य। उनका आश्रम प्रयाग में ज्ञान और विज्ञान का केंद्र रहा।
मंत्र जिनकी द्रष्टा परंपरा भारद्वाज ऋषि से जुड़ी है।
संगम किनारे स्थित आश्रम ने अनेक राजकुमारों और ऋषियों को शिक्षित किया।
विमान, आयुर्वेद और धनुर्वेद के मूल सिद्धांतों को संरक्षित किया।
महर्षि बृहस्पति के पुत्र के रूप में जन्म; बचपन से ही वेद, आयुर्वेद और ज्योतिष का अध्ययन।
तीन जन्मों तक वेद अध्ययन की कथा प्रसिद्ध है। ब्रह्मा से दर्शन प्राप्त कर वेद ज्ञान का संवहन किया।
संगम तट पर स्थित आश्रम में राजकुमारों और ऋषियों को नीति, विज्ञान और अध्यात्म का पाठ पढ़ाया।
वनवास के प्रथम चरण में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण को आश्रय दिया; चित्रकूट के लिए मार्ग बताया।
द्रोणाचार्य, अग्निवेश और भारद्वाज गोत्र के लाखों परिवार आज भी उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।
महर्षि भारद्वाज ने वैदिक मंत्रों से लेकर वैमानिक और आयुर्वेदिक शास्त्रों तक ज्ञान की अमूल्य धरोहर हमें सौंपी।
इंद्र, अग्नि और वायु देवताओं की स्तुतियों से परिपूर्ण गहन दार्शनिक मंत्र।
ज्ञान, कर्म और भक्ति मार्ग के संतुलन पर बल; आत्मा और ब्रह्म की एकता का संदेश।
“परि त्वा गिर्वणः...” जैसे मंत्रों से सामूहिक चेतना, प्रकाश और सुरक्षा का संदेश।
“यंत्र सर्वस्व” में हवाई यानों के प्रकार, धातुएँ, ऊर्जा स्रोत और नेविगेशन सिद्धांत वर्णित हैं।
आयुर्वेदिक औषधियों, उपचार पद्धति और रोग-निवारण के प्रायोगिक निर्देश।
राजनीति, युद्धनीति और अस्त्र-शस्त्र संचालन पर आधारित ग्रंथों की परंपरा को दिशा दी।
वेद, विज्ञान और सेवा की भावना को जन-जन तक पहुँचाना हमारा दायित्व है। इस पावन परंपरा से जुड़कर ज्ञान और समाज सेवा के संकल्प को साकार करें।